दुःखों की चादर ओड,
अधूरे सपनों की टुटन से भीगें,
गालों को छुपाए बैठे थे,
सदा के लिए अंधकार में समा,
जीने की नाउम्मीद में सिमटे थे,
उम्मीद भरा एक हवा का झोंका,
बार-बार चद्दर को उठाने की,
गुजारिश कर रहा था,
चादर के महींन झरोखों से,
फिर से कोशिशों की रोशनी फैला रहा था,
मैंने हवा की बात मान,
दुःखों की चादर हटा,
आशा का नया,
प्रकाश पा लिया,
उस हवा ने मुझे जीना सीखा दिया।