लेखक : डॉ० आर० बी० सिंह, उ० प्र० राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय के बरेली के क्षेत्रीय समन्वयक हैं ।
खाट का पाया
एक राजा को संगीत सुनने का बड़ा शौक था उसके दरबार में एक से एक फन्कार थे। जो महफिल लगने पर अपना फन प्रस्तुत करते थे। राजा उन्हें काफी इनाम दिया करता था। जिससे फन्कार के साथ रहने वाले काफी चिढ़ते थे।
एक दिन फन्कार के पड़ोसी ने कहा कि मुझे भी राजा की हर हफ्ते लगने वाली महफिल में ले चलो, इस पर फन्कार ने कहा कि तुम्हें तो कोई भी वाद्ययंत्र बजाना नहीं आता।
इस पर वह बोला कि उसकी चिंता छोड़ो बस मुझे एक बार ले चलों । जो इनाम राजा देंगे उसमें से तुम्हे भी कुछ दे दूँगा । आखिरकार वो दिन आ ही गया जब राजा की महफिल में जाना था। पड़ोसी नेखाट का पाया निकाला तथा उसको सुन्दर पेपरों से सजाकर गोटा लगाकर एक यंत्र का रूप दे दिया तथा अपने दोस्त के साथ दरबार में पहुंच गया तथा जब सब फन्कार अपना हुनर दिखा रहे तो वह खाट के पाये पर इधर से उधर उगलिया फेरता रहा तथा इनाम भी मिल गया। अगले हफ्ते जब महफिल लगी तो राजा ने कहा सब अलग-अलग अपना हुनर प्रस्तुत करें। जब इसका नंबर आया तो पूरे नाटक के बाद भी कोई आवाज नहीं आ रही । थी राजा ने कहा तुम्हारे यंत्र से तो कोई आवाज ही नहीं निकल रही है। इस पर खाट के पाये वाले ने कहा यह दुनिया का अकेला यंत्र है जो केवल समूह में ही बजता है अकेला कभी नहीं बजता .।
निष्कर्ष: राजा तो चले गये पर अपने पीछे खाट के पाये बजाने वाले छोड़ गये जो आजकल हर दफ्तर संस्थान इत्यादि में मिलते हैं।
लेखक : डॉ० आर० बी० सिंह, उ० प्र० राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय के बरेली के क्षेत्रीय समन्वयक है।