जब बात हुई है हिंसा की ,
तो नारी को कैसे भूले हम....
जब बात हुई है हिंसा की ,
तो नारी को कैसे भूले हम....
घर की अंदर चल रही ,
बातों को जिसने ,
अपने अंदर कैद किया....
अपनी हर एक चीखों को जिसने ,
समय के साथ ,
रोकना सीख लिया.....
अपने हर एक निशानों को ,
कभी दुपट्टे ,
तो कभी मेकअप के ,
नीचे ढक लिया......
हर वक्त में जो तुमने ,
खुद को भुला ,
जीना सीख लिया.....
आंख बंद कर बैठी है ,
वह समाज आज भी....
आंख बंद कर बैठी है ,
वह समाज आज भी....
कभी चौराहे , कभी स्कूल ,
तो कभी घर के अंदर ,
आज भी पीट रही है कोई स्त्री......
अब तो आंखों की ,
उस पट्टी को खोलो.....
स्त्री पर उठते हिंसा के ,
हाथों को रोक लो.....
जहां जरूरत है वहां ,
जरा कुछ तो बोल लो....
दूसरे ना सही तुम खुद ,
एक बार पहल करके देख लो.....
Iffat fatma