माँ विनती सुन लो
माँ वीणा मम विनती सुन लो,अम्ब विमल-सी मति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।
सार युक्त हो रचना मेरी,प्रेम भाव अर्पण हो।
मिले ज्ञान हर इक पाठक को,सकल जगत दर्पण हो।
छल-बल भावों पर वार करे,भाव सृजन समुचित दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।
आज जगत सब माया लोभी,मानवता है भूला।
पाकर माया के कुछ टुकड़े,द्वेष दर्प से फूला।
विनती सुनकर माँ यह मेरी,ज्ञान जगत को अति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।
रूढ़िवादिता फैली जग में,कुल दीपक सुत होता।
होती सुता पराई जग मेंभेद भाव अति होता।
चले कलम इस पर भी मेरी,काव्य सृजन में रति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।
मानव मानव को पहचाने,सत्य प्रेम उर भर दो।
प्रकृति सुरक्षा भाव हृदय में,मम कृति में घर कर दो।
चरण पड़ा है ओम आपके,भाव अहम कर इति दो।
भाव प्रबल लेखन हो मेरा,शब्द शिल्प की गति दो।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'
कानपुर नगर