हिन्दू दूल्हे ये विवाह संस्कार में मुगलों जैसी दाढ़ी क्यों रखकर आते हैं? महिलाएँ संगीत के नाम पर भोंडापन क्यों दिखा रही हैं? हल्दी, उबटन, सांझी गायन के परम्परागत रीति रिवाजों की जगह सीरियलों की तरह मेहंदी और हल्दी हमने क्यों ज़बरदस्ती पकड़ ली? तोरण द्वार पर पाणिग्रहण संस्कार के समय, युवक/युवतियों द्वारा हुल्लड़ क्यों किया जाता है? कान फोड़ू मुन्नी बदनाम हुई, छत पर सोया बहनोई और अन्य अशालीन अभद्र गीत क्यों बज रहे हैं? हम सबको सनातन संस्कृति के अनुरूप होने वाले विवाह संस्कारों, रीति रिवाजों से इतनी एलर्जी क्यों हो गई है कि वो सब बकवास लगने लगे हैं? पण्डितजी से फेरे जल्दी करवाने की जिद करने वाले लोग बैंड बाजे के आगे नाचने में ही समय क्यों बर्बाद करते हैं? आशीर्वाद समारोहों में बड़ी टीवी स्क्रीन पर अपने ही बेटे-बेटी के प्री वेडिंग शूट आगन्तुकों को क्यों दिखाए जा रहे हैं? प्री वेडिंग शूट के नाम पर विवाह पूर्व इस तरह की स्वतंत्रता क्यों दी जा रही है? उन फोटोज को सार्वजनिक प्रदर्शनी के रूप में क्यों लगाए जा रहे है? स्टेज पर बड़े बुजुर्गों को भी डांस टीचर ठुमके क्यों लगवा रहे है? उनसे असभ्य हरकतें क्यों करवाई जा रही हैं? भोज में दिखावा क्यों किया जा रहा है? आशीर्वाद समारोह में दूल्हा-दुल्हन स्टेज रात 11 बजे तक नदारद रहते हैं और भी बहुत कुछ ऐसा हो रहा है जो हिन्दू समाज को पथभ्रष्ट करने हेतु काफी है. परिवार, समाज सब पतनशील हो गए हैं कोई समझाता क्यों नहीं? महिलाएं गीत भूल गई हैं, पुरुष परम्पराओं का तर्पण कर चुके हैं. किसको फॉलो करते हो? क्या हमारे आराध्य ईश्वर, देवी देवताओं के दाढ़ियां लटकती हैं? क्या हमारे शास्त्रों, पौराणिक ग्रंथों में ऐसे विवाह समारोहों का वर्णन है? हमें वैचारिक, मानसिक रूप से धर्मभ्रष्ट किया जा रहा है, हम इसे खुशी-खुशी स्वीकार कर चुके हैं, परिणाम खतरनाक हो रहे हैं और होंगे. बच सकते हो तो बच जाओ, आओ सनातनी संस्कृति संस्कारों को बनाये रखने संकल्प लें, पाणिग्रहण जीवन का सबसे बड़ा संस्कार है🙏🚩
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न तो कोई बताने समझाने वाला है और न कोई समझता ही है।
सब टी वी सिनेमा की नकल कर अकल से दिवालिये हो रहे हैं।
बहुत कारण हैं कोई समझना ही नही चाहता।
हम स्वयं को सनातनी परम्परागत हिन्दू तो कहते कहलाते हैं परन्तु क्या हम क्षरण होती इस सनातनी परम्परा के प्रति थोडे से भी जागरूक हैं।क्या हमें अपनी सनातन परंम्पराओं संस्कृति की समझ भी है? उत्तर न ही है। हम हिंदू बनने का फटे ढोल की तरह ढिंढोरा जरूर पीटते हैं पल हम जानकारी से शून्य हैं। जयदि जानकारी होती जागरूकता होती तो इस पवित्र संस्कार मे इतनी फूहडता, भौंडापन और अभद्रता न आती।
बहुत ही सुन्दर लाजवाब संदेश है।
*काश! हम अपनी संस्कृति के प्रति थोडे से भी जागरूक होते?????*