यू तो सारा दिन उलझनों का शोर चला,
लाख की कोशिशें पर न मनका जोर चला।
फिर हुई शाम,
तब रुक गए सारे काम।
ढलने को सूरज चला,
मन धरने को धीरज चला।
तृप्त हुआ ये मन,
तब माना यही है जीवन।
जो समझते वो रहते मौन,
इस सृष्टि में सबसे सुंदर कौन।
पेड़,पौधे,पंछी और नदिया,
इन सबने ही तो मोहित किया।
शोर के पीछे छुपी शांति,
कर उलझनों पे तू क्रांति।

-Writer Bhavesh Rawal

Hindi Poem by Writer Bhavesh Rawal : 111860532
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