कभी रंग-बिरंगी पतंगों से सजता था अपना चमन,
अब बिल्कुल ही सूना पड़ा है, देखो यह नील गगन।
थोड़ी बहुत फुर्सत मिले तो आ जाना अपनी छत पर,
हम तुम मिलकर फिर उड़ाएंगे, अपने सपनों की पतंग।

मकर संक्रांति एवं लोहड़ी की लख-लख बधाईयां।

-Pragya Chandna

Hindi Poem by Pragya Chandna : 111854570
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