पतंग
अपनों के प्यार की डोर से बंध
आसमान की बुलंदियों पर इठला रही
अपने इरादों पर टिकी, ऊंचाइयों की उड़ान भर रही
काटे अगर इस पक्की डोर को, उसका अस्तित्व मिटा रही
फिर गर्व से इतरा रही
बस नहीं है उसे पता, किसी और की डोर,
हो उस पर सवार, हौसलों पर कर प्रहार
अपनों से जुदा कर देगी
उसे नीचे गिरा देगी।