Hindi Quote in Poem by Mukesh Dusad

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मै और मेरी परछाई
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आज मैं उससे थोड़ा डर सा गया हूं
थोड़ा सा शहम सा गया हूं
कभी वो मेरे चलते चलते आगे आ जाती है
तो पता नहीं कब वो पीछे हो जाती है
कभी कुछ बोलती तो नहीं है
लेकिन हमेशा साथ रहती है
कभी उसको देख मुस्कुरा देता हूं
वो दिखती है मेरे जैसे बस थोड़ा रंग बदला है
कभी कभी साथ तो कभी चलने का ढंग बदला है
कभी वो एक तो कभी दो या तीन भी हो जाती है
तो कभी वो देखने वाली सीन भी हो जाती है
मैं पीछा करता हूं उसका साए की तरह
वो भी मेरे साथ रहती है बिना जाए की तरह
जब कोई नहीं रहता मेरे साथ तभी वो मेरे पास रहती है कभी दिखती है तो कभी छुप जाती है पराए की तरह
लेकिन रहती है पास कभी भी महसूस नहीं होने देती
अंधेरों में कभी आगे तो कभी पीछे रह जाती है
और उजालों में कभी दिख तो कभी छुप सी जाती है
आज भी वो मेरे साथ गई और फिर आई है
क्योंकी वो मेरी परछाई है
कभी वो धीरे धीरे तो कभी वो तेज हो जाती है
फिर वो अचानक से आ कर एक हो जाती है
आज फिर उसने मुझे डरा दिया है
फिर अपना सा बोलकर समझा दिया है
धन्यवाद

Hindi Poem by Mukesh Dusad : 111832874
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