*रणछोड़ श्री कृष्ण* जरासंध ने जब 23 अक्षौहिणी सेना लेकर मथुरा पर पुनः आक्रमण कर दिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने राजा जरासंध के विशाल सैन्य समूह के आक्रमण से मथुरा की रक्षा करनी चाहिए तथा और अधिक सैनिकों के वध को रोकने के लिए एवं कुछ और महत्वपूर्ण कार्य संपादित करने के लिए युद्ध किए बिना ही रण क्षेत्र का त्याग कर दिया ।वास्तव में वे तनिक भी भयभीत नहीं थे किंतु उन्होंने जरासंध की विशाल सेना तथा शक्ति से भयभीत एक साधारण मानव होने का अभिनय किया बिना कोई शस्त्र लिए उन्होंने रण क्षेत्र त्याग दिया। जरासंध ने विचार किया कि इस बार श्री कृष्ण तथा बलराम उन की सैन्य शक्ति से अत्यंत भयभीत हैं और रणक्षेत्र से भाग रहे हैं ।उसने अपने समस्त रथों अश्वों तथा सैनिकों सहित उनका पीछा करना प्रारंभ किया ।उसके अनुसार श्री कृष्ण तथा बलराम साधारण मानव है और वह उसी प्रकार उनकी गतिविधियों का आंकलन रहा था। असुर सदैव श्री कृष्ण के ऐश्वर्य तथा शक्ति को मापने का प्रयास करता है जबकि एक भक्त कभी भी उनके ऐश्वर्य तथा शक्ति को मापने का प्रयास नहीं करता है ।भक्त सदैव भगवान की शरण में जाते हैं और उनका भजन करते हैं। श्री कृष्ण को रणछोड़ कहा जाता है, जिसका अर्थ है वह व्यक्ति जिसने रण क्षेत्र छोड़ दिया हो। साधारणतया यदि कोई राजा युद्ध किए बिना रण क्षेत्र छोड़ देता है तो उसे कायर कहा जाता है किंतु श्री कृष्ण युद्ध के बिना रण क्षेत्र छोड़ देने की जो यह लीला करते हैं तो भक्त उनकी उपासना करते हैं। उन्होंने अपनी इस लीला से भक्तों को यह प्रेरणा दी है कि जब अपने सामने वाले व्यक्ति को आप समझाने में असमर्थ है आप उसके साथ मुकाबला करने के लिए मानसिक रूप से अब नहीं चाहते हैं या यह कह दे कि अब आप और उसके समक्ष नहीं रहना चाहते हैं जब आपकी सारी संभावनाएं खत्म हो जाए तो उस रण क्षेत्र को छोड़ दीजिए आपके सामने वाला आपको कायर कमजोर मान सकता है पर आप जानते हैं कि आपने उस स्थान को छोड़कर उस व्यक्ति पर दया की है स्वयं आप उन गलत परिस्थितियों को छोड़ना चाहते थे इसलिए आपने वहां से पलायन कर दिया आप को समझने वाले व्यक्ति आपकी इस बात का सही आंकलन करेंगे जबकि मूर्खों को आपका यह प्रयास कभी समझ नहीं आएगा। इसलिए विषम परिस्थितियों में रणछोड़ ही बन जाना चाहिए ।।राधे राधे