तुलसी जी की दोनों बहुओं के पीहर से तीज का सामान भर भर के उनके भाइयों द्वारा पहुंचा दिया गया था!
छोटी बहू मीरा का यह शादी के बाद पहला त्यौहार था! चूँकि मीरा के माता पिता का बचपन में ही देहांत हो जाने के कारण, उसके चाचा चाची ने ही उसे पाला था इसलिए और हमेशा हॉस्टल में रहने के कारण उसे यह सब रीति-रिवाजों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी!
आज जब मीरा ने देखा कि उसकी जेठानियों के पीहर से शगुन में ढ़ेर सारा सुहाग का सामान, साड़ियां, मेहंदी, मिठाईयां इत्यादि आया है तो उसे अपना कद बहुत छोटा लगने लगा। पीहर के नाम पर उसके चाचा चाची का घर तो था, परंतु उन्होंने मीरा के पिता के पैसों से बचपन में ही हॉस्टल में एडमिशन करवा कर अपनी जिम्मेदारी निभा ली थी और अब शादी करवा कर उसकी इतिश्री कर ली थी। आखिर उसका शगुन का सामान कौन लाएगा, ये सोच सोचकर मीरा की परेशानी बढ़ती जा रही थी। जेठानियों को हंसी ठहाका करते देख उसे लगता शायद दोनों मिलकर उसका ही मजाक उड़ा रही हैं।
अगले दिन मीरा की सास तुलसी जी ने उसे आवाज लगाते हुए कहा, "मीरा बहू, जल्दी से नीचे आ जाओ, देखो तुम्हारे पीहर से तीज का शगुन आया है।" यह सुनकर मीरा भागी भागी नीचे उतरकर आँगन में आई और बोली, "चाचा चाची आए हैं क्या मम्मी जी? कहां हैं? मुझे बताया भी नहीं कि वे लोग आने वाले हैं!"मीरा एक सांस में बोलती चली गई। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके चाचा चाची भी कभी आ सकते हैं। तभी तुलसी जी बोलींं, "अरे नहीं, तुम्हारे चाचा चाची नहीं आए बल्कि भाई और भाभियां सब कुछ लेकर आए हैं।" मीरा चौंंककर बोली, "पर मम्मी जी मेरे तो कोई भाई नहीं हैं फिर...?
ड्रॉइंग रूम में देखो, वो लोग इंतजार कर रहे हैं"। मीरा कशमकश में उलझी धीरे धीरे कदम बढ़ाती हुई, ड्रॉइंग रूम में घुसी तो देखा उसके दोनों जेठ जेठानी वहां पर सारे सामान के साथ बैठे हुए थे।पीछे-पीछे तुलसी जी भी आ गईंं और बोलींं, "भई तुम्हारे पीहर वाले आए हैं, खातिरदारी नहीं करोगी क्या?" मीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो कभी सास को देखती तो कभी बाकी सभी लोगों को। उसके मासूम चेहरे को देख कर सबकी हंसी छूट पड़ी। तुलसी जी बोलींं, "कल जब तुम्हारी जेठानियों के पीहर से शगुन आया था तो हम सबने ही तुम्हारी आंखों में वह नमी देख ली थी। जिसमें माता पिता के ना होने का गहरा दुःख समाया था। पीहर की महत्ता हम औरतों से ज्यादा कौन समझ सकता है !इसलिए हम सबने तभी तय कर लिया था कि आज हम सब एक नया रिश्ता कायम करेंगे और तुम्हें तुम्हारे पीहर का सुख जरूर देंगे।"मीरा को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिन रिश्तोंं से उसे कल तक मजाक बनने का डर सता रहा था। उन्हीं रिश्तों ने आज उसे एक नई सोच अपनाकर उसका पीहर लौटा दिया था। मीरा की आंखों से खुशीके आंसू बह रहे थे!