गॉंव का विकास सरपंच के बस्ते में बंद हो गया।
मठ के बाबा का ध्यान नोटों से भंग हो गया।
गॉंव का तालाब और पोखर मनरेगा की भेंट चढ़ गया।
गरीबों का गल्ला सारा कोटेदार ऐंठ गया।
बी डी ओ ,वी डी ओ को फटकार लगाता है।
उसके हिस्से में बचा खुचा माल जो आता है।
लेखपाल पटवारी कानूनगो सब मिले हुए हैं।
फर्जी पट्टा कर के चेहरे खिले हुए हैं।
प्रधान मंत्री आवास की क़िस्त कब तक आएगी।
ये टूटी फूटी झोपड़ी को काकी कब तलक छवायेगी।
गॉंव की जनता विकास की बाट जोह रही है।
मँहगाई आम इंसान की कमर तोड़ रही है।
ऑफिस का बाबू माला माल हुआ फिरता है।
दस रुपये की ख़ातिर बेटा बाप को बिगड़ता है।
-arjun verma