बन के मेघ बरसो कि धरा को शीतलता प्रदान हो।
सतकर्म करो ऐसा की ख्याति चहुँओर गुणगान हो।
तृण-तृण इठलायें पपीहा प्यास बुझाए।
टर्र टर्र मेढक बोले चातक शोर मचाये।
वृक्षों की शाखाएं झूम झूम गाएँ।
बावरी पवन खूब इतराये।
बरखा रानी गज़ब कहर ढाए।
हियरा आज मचल मचल जाए।
असाढ़ महीना बिजली चमके।
कारी कारी निशा डराए।
पानी मे पदचाप छप्प छप्प करे।
मन सोच सोंच ऐसे डरे।
आहिषता आहिषता कोई कदम बढ़ाए।
जियरा धक धक करता जाए।
पिया मिलन कि ये कैसी बेला।
झींगुर और जुगनू का मेला।
तृप्त तृप्त अधरों का स्पर्श
व्योम को पाने का अर्स।
देह देह का सुख संचय अभिलाषा
नयनों से बहती है विपाशा।
-arjun verma