तू जो करना चाहता है कर क्यूँ नहीं जाता?
तू ने ग़र मरना है फिर मर क्यूँ नहीं जाता?
कोई तुझ से मिलता है पूरा हो जाता है,
तुझ से मिल के भी मैं निखर क्यूँ नहीं जाता?
हर दिन घर जाने की देरी रहती थी ना?
शाम हुई है फिर भी तू घर क्यूँ नहीं जाता?
फिर शायद तकलीफ़ ना भी हो जुदा हो के,
सब की नज़रों से उतर क्यूँ नहीं जाता?
इक ज़ख्म पुराना पीछा क्यूँ नहीं छोड़ रहा?
आख़िर उनकी यादों का असर क्यूँ नहीं जाता?
अक्ष तिरी लापरवाही तुझ को भारी पड़ गई,
मौत आ गई है तो मौत का डर क्यूँ नहीं जाता?
- अक्षय धामेचा