मास्टर सर्वशक्तिमान !!!
जब से तुझे कह दिया था, कण कण में व्याप्त।
जीवन में सुख हो गया था, प्रायः समाप्त।।
"तुम मात पिता, हम बालक तेरे" रह गया था केवल नारा।
इसलिए भूल चुके थे, प्यारा सा भाईचारा।।
भूलकर तुझको, खो दी थी अपनी भी असलियत।
इसलिए अब तक नहीं पा सके थे तेरी मिल्कियत।।
सब जगह ढूँढा चैन औ अमन, पर कहीं नहीं पाया।
दर-दर भटककर, सिर्फ मन को मैंने भरमाया।।
जब बनाऊँगा तुझसे नया रिश्ता, होंगे पिता और संतान।
तब कहलाऊँगा मैं भी, मास्टर सर्व शक्तिमान।।
अब तक जो था मेरा, वह सब तुझको अर्पण।
बनाऊँगा स्वच्छ तुझसा, अपना भी मन दर्पण।।
इस धरती पर रहकर, उडूँगा बन फरिश्ता।
वादा है तुझसे, निभाऊँगा यह नया रिश्ता।।