मेरे बेटे,
एक आशा,एक स्वप्न, एक ख्वाहिश,
जो शेष है मेरी जिंदगी में,
सफलता के आकाश में,
चमकोगे सूरज-चाँद की तरह,
तुम्हारा सौम्य-सरल व्यक्तित्व,
मोह लेगा मन को मुक्ता की मानिंद,
कर देगा शांत मेरे व्यथित हृदय को।
मोड़ दोगे तुम उन उंगलियों को,
जो उठती रहती हैं मेरी परवरिश पर,
भूल जाऊँगी अपनी समस्त विफलताएं,
जब सफल कर दोगे मेरे मातृत्व को,
भर उठेंगे मेरे नैन ख़ुशी के अश्रु से,
कर दोगे गर्वोन्नत मेरा मस्तक,
औऱ मैं कह सकूँगी शान से
कि, देखो..मेरा बेटा है वह।
रमा शर्मा 'मानवी'
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