बाल उत्पीड़न
मासूम इन चेहरो पर कब ह॔सी गूंजेगी,
बाल उत्पीड़न बच्चे को कब रिहायत मिलेगी,
खेलने कूदने की उम्र मे ही मुरझाती है उनकी जिंदगी,
कभी सड़क पर तो कभी कोठे पर बिठाती है जिंदगी,
दरिन्दे कूछ ऐसे भी है ,जो इन्हे इस्तेमाल करते है,
अपनी जाहोजलाली इनके क॔धो पर,पैर रख कर करते है ।
मृदुल मन ने इस शहर मे बचपन को मरते देखा है।
गलियों और चौराह पर कचरे से खाना ढुंढते देखा है ।
पता नही उन पर खुदा की रहमत कब बरसेगी, उनको खुशीओ की सौगात कब मिलेगी ।
writer: मृदुल शुक्ल (मृदुल मन