कलम की आवाज़
कुछ लिख सको तो लिख जाओ
चुप्पी की बड़ियों में बंधकर ही सही
खामोशी की तलवार बनकर बढ़ जाओ
जुल्मों का सर कलम कर जाओ
आज हुक्म आया है जुबां काट देने का
अब वक्त है , अल्फाजों में मिट जाने का
लिख डालो, किसानों की बूढ़ी फरियाद पर
लिख डालो, देश निकाले की बुनियाद पर
इस कलम से बुलंद हुंकार भरकर सही
इस युद्ध में रक्त नहीं, स्याही की धारा बही
लिखो, भिड़ते युवा रोजगारों की कतार पर
लिखो लौटते मजदूरों के पैरों के छालों पर
यह युद्ध है, परखज्जों में उड़ता सैनिकों का
यह युद्ध है, बिलखता शहीदों के करीबी का
वैसे तो यहां हर इंसा चल रहा तन्हा- तन्हा
पर एक हों बह रही उन लाशों का कारवां
कुछ लिख सको तो बेझिझक लिख जाओ
बादशाह का ज़ुल्म तरीखवार कर जाओ
करिश्मा कलम का, तलवार बन,दिखा जाओ