५. झगड़ा
१. जब हम एक दूसरे के नजदीक होते हैं तब अपने व्यवहार में झगड़ा या कलह हो सकता है, जैसे कि दो पड़ोसी राष्ट्रों मे, महोल्ले के दो पड़ोसी के बीच या परिवार और सगे संबंधी के अंदर।
२. कभी-कभी छोटी बातों से, झगड़ा बड़ा स्वरूप लेता है और यह विवाद झगड़े का, हिंसा में परिवर्तन होता है।
३. बरसों से चली आती मित्रता, अच्छा व्यवहार ,कुछ पलों में झगड़े के कारण चौपट हो जाती है।
४. झगड़े करने वाले व्यक्ति में और परिवार में तनाव होता है, भय का वातावरण पैदा होता है, मन की शांति चली जाती है, अविश्वास का जन्म होता है और
वह स्वार्थी हो जाता है। ५. ५.झगड़े, दो व्यक्ति के बीच सीमित नहीं है, कभी-कभी यह दूसरी तीसरी पीढ़ी तक ,कई बरसोसे तक चलती है और लोग भूलते नहीं है।
५. झगड़े का मूल है, अपना दृष्टिकोण । ज्यादातर जब एक का दृष्टिकोण दूसरे के दृष्टिकोण से तालमेल नहीं रखता है , जब एक का हित, दूसरे का अहित है या दोनों का हित एक ही, चीज में है , तब कलह या झगड़ा होता है।
७. झगड़े का समाधान करने के लिए लोग तटस्थ, निपक्ष व्यक्ति या संस्था (कोर्ट, अदालत )का सहारा लेते हैं।
८. मानववादी विचारधारा मानती है कि सारे विश्व के झगड़े का समाधान हो सकता है, जब लोग एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझे, मित्रतापूर्ण वातावरण में मुक्त बातचीत करें ,पहले के बुरे अनुभव को दूर रखें और ऐसा रास्ता निकालें ताकि किसी प्रकार भेदभाव ना रहे और लंबे समय तक सभी पक्ष का समाधान रहे और मित्रता बढ़ती रहे।
Humanist movement
(To humanize the earth themes humanist aspects of peace and non violence in the internal and external world