वो सूर्य की किरणों सी पावन थी
हम पुरवैया के जैसे चंचल थे
वो फुलवारी का आकर्षण थी
हम एक अवांछित डंठल थे
देखा भी हो उसने कभी
हमे ऐसा कोई आभाष नहीं
दसवीं तक रहा यह मानसिक संबंध
मिलन की फिर रही कोई आस नहीं
अधेड़ शरीर-युवा मन, मिलन हुआ FB पर
संवाद कोई अभी भी नहीं, पूर्ण हुआ जीवन पर
-Sandeep Shrivastava