अंधेरी अमाव्स से डर तुने आकाश को नहीं देखा,
उम्मीद थी और भी सितारे देखे तु सूरज के सिवा,
चलो फिर भी तुने बिन्दुवत मुझे जहां से है देखा,
हजारों सूरज समेटे बैठा हू मैं एक शोले के सिवा,
बोनापन कैसे कहु तेरा,नूर तुजमे उसी का देखा,
कमी तुज़मे कुछ नहीं,बस नजदीकियों के सिवा,
क्या हर एक बात पे लिखता रहू एक एक कविता!
शब्दों की उष्मा भी महसूस कर स्याहि के सिवा,
मेरी ना सही तू इस कलम की तो इज्जत कर,
इससे कुछ भी लिखवा बस एक मुजरे के सिवा,
- मनीष
12/05/2021
Wednesday