एक साथी, मंजिल का
राहे- जिंदगी मे , आँख मुंदकर
किसी का हाथ पकड़ कर
ठहर चुका था मै,
पर जब देखा आँखे खोलकर
सब बड़ी दूर निकल चुके थे
नही था कोई आस - पास
हाथों मे हाथ एक भ्रम था बस एक ।
बड़ी तेज दौड़ लगाई फिर
थक के गिरा बड़ी जोर से
अब उठ ना सकूँगा शायद,
काश ये आँखे, बंद ही रहती ,
काश वो भ्रम, बना ही रहता ,
या काश कोई साथी होता
जिसका हाथ पकड़
खड़ा होता एक बार फिर से ।
-- Shekhar shivam 😊