🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
समेटना तो चाहा था मैंने तुम्हें मेरी
गिरह में,
मगर पकड़ तेरे हाथों की तुमने ही
ढीली रखी थी,
वफ़ा की राह में हम तो ज़माने से
भी लड़ जाते,
कमी यह थी कि बुनियाद तूने ही
रेतीली रखी थी,
नसीबों की लकीरें भी हमारे हक़
में भला क्या आतीं,
कि तक़दीर की वो स्याही भी तूने
ही नीली रखी थी,
उम्मीदों के सभी गुलशन सुलग
कर राख हो बैठे,
मगर यादों की इक टहनी अभी
तक मैंने गीली रखी थी,
मैं कैसे कैद रखता उस परिंदे
को भला ज़ख्मी,
जिसने उड़ने की अपनी ज़िद
ज़रा ज़हरीली रखी थी…🔥
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh ☜
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