*ज़िन्दगी रही जस की तस*
हुश्न-कुड़ी ने दावत कराया
इश्क़ के घर चावल पकाया
चाँद-कुड़ी ने थाली सजाई
चाँदनी अपनी सुरा मिलाई।
धरती के गहरे दिल के इतर
आकाश की गड़ी तीरे-नज़र
फूलों का जब दिल धड़का
झट भवरों ने बाहों जकड़ा।
उम्र के पन्ने पर लिख गया
तकदीरों को कौन पढ़ गया?
क़िस्मत लिख गई नग़मों में
जीवन बीता किन चकमों में?
कल्प-बृक्ष की छाँव में बैठे
दोहनी भरने कामधेनु ऐठे
हर्फ़ बदन से आती महक
कोयल ध्वनि जाती चहक।
सपनें नींद आकर महकते
यादें के रस होंठ चहकते
बरसों की हम चीरते राहें
हसरत अपनी फैलाएं बाहें।
जिंदगी की ओढ़नी सिले
पर शहनाई से नही मिले
मिलना हथेली के बूंद कस
ज़िन्दगी रही जस की तस।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्वाधिकार सुरक्षित
01/01/2021