Hindi Quote in Poem by shiv bharosh tiwari

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चित्रकूट
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इस शहर में बसंत अचानक आता है
मैंने कई बार देखा है बसंत आते हुए
जब आता है तो उठता है धूल का बवंडर
इस महान पुराने शहर के बीच बने
रामघाट की जीभ किरकिराने लगती है।

आदमी रामघाट पर जाता है
आखिरी पत्थर के माँथे पर
बैठ कर मुलायम हो जाता है
घाट की सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आंखों में
एक अजीब सी नमी दिखाई देती है
एक अजीब-सी चमक भर जाती है
सीढ़ियों में बैठे भिखारियों के कटोरों पर
श्रीराम पर्वत की परिक्रमा करते वक्त
मैंने कई बार भिखारियों के खाली कटोरों में
बसंत को उतरते देखा है।

परिक्रमा के द्वार सदा ऐसे ही खुलते हैं
आदमियों का हुजूम नारियल के छिलके
जूता चप्पल से भरे बोरे के गट्ठर
आदमियों के कंधों में बच्चों का बोझ
कूदते फाँदते पीछा करते बंदरों के झुंड।

यह शहर अंजाना नही है
इस शहर में लोग धीरे धीरे चलते हैं
मझगवाँ से आतीं हुईं
हिचकोले खातीं खटारा बसें
धीरे धीरे बगदरा घाटी से उतरती हैं
रह रह कर बजती हैं यहाँ घण्टियाँ
धीरे धीरे सूरज ढलता है
धीरे धीरे उड़ती है धूल
धीरे धीरे सुनाई देती है इस शहर में
एक साथ होने की लय
दृढ़ता से बांधें हुए है इस शहर को
धीरे धीरे यहाँ पर आने वाली भीड़
धीरे धीरे भरते हैं भिखारियों के कटोरे।

धीरे धीरे बिखरती है यहाँ
मंदिरों के मुंडेरों में चाँदनी
धीरे धीरे चढ़ते हैं लोग हनुमान धारा
धीरे धीरे बहती अनुपम गुप्त गोदावरी
धीरे धीरे दिखते हैं पंचमुखी हनुमान
धीरे धीरे रामघाट की सीढ़ियों को छूकर
बंदन करती है पबित्र पयसुनी सरिता
धीरे धीरे बहती हैं यहाँ नावें
धीरे धीरे खुलतीं हैं मन की आँखे
धीरे धीरे दिखती हैं मानस रचयिता
तुलसीदास की खड़ाऊँ
जो यहाँ रखीं हैं सैकड़ों बरसों से।

अदभुत है चित्रकूट के पर्वतों की बनावट
हर जगह श्री राम के चरण की पादुकाएं
भाई भरत मिलाप की सुंदर सी कुटिया
मनभावन माता सती अनुसुइया की रोसाईयाँ
अनेक सरिताओं के जल से भरा भरतकूप
देखते बनती है यहाँ की आरती आलोक
मंत्रों की ध्वनियाँ सुन कर्ण बौराते हैं
साधनाओं की गुफ़ाएँ आनंद फैलाती चहुओर
गली गली टंगे यंत्र,मंत्र तंत्र की मालाएँ।

महात्माओं के कर्णप्रिय प्रवचनों की गूंज
मंदिरों के चमकते ऊंचे ऊंचे गुम्बज
हवन के स्तम्भ और ख़ुशबू के स्तम्भ
संतो के उठे हुए हाथों के स्तम्भ पर
खड़ी हैं चित्रकूट की पर्वत शिखाएँ
यहाँ की अदभुत छटाएँ, शिलाएँ, दिशाएँ
किसी अलक्षित सूर्य को अर्घ देतीं
शताब्दियों से इंतजार कर रहीं हैं राम राज्य की।।
पुनः राम राज्य की।।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्वाधिकार सुरक्षित
26/12/2020

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111633688
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