Hindi Quote in Poem by shiv bharosh tiwari

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मेरे गाँव की नदी
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अगर मैं धीरे चलता हूँ
तो उसको पकड़ लेता हूँ
अपनी अंजुली में भर लेता हूँ
अगर दौड़ने लगता हूँ
तो वो अंजुली से छूट जाती है
अगर उसके साथ चलने लगता हूँ
तो वो मेरे साथ चलने लगती है
करोड़ों तारों, करोड़ों चाँद और
करोड़ों सूरज को अपने विशाल
आँचल में वो समेट लेती है
दुनिया को हथेली में रच लेती है।

लू के प्रचंड थपेड़ों के बाद
जब मैं दोपहर थक जाता हूँ
ताजगी और ऊर्जा की मुझे
बेहद जरूरत होती है तब मैं
उसकी तरलता में गोते लगाता हूँ
वर्ष के उदास दिनों में भी
मेरे गांव की वो भोली नदी
मेरे मन को उत्साह दे जाती है।

पत्थरों के नीचे बालू के ऊपर
चुपचाप वो बहती जाती है
पूरा गाँव जब सो जाता है
तब भी किवाड़ों के कानों से
धीरे धीरे वो अपनी बाँसुरी
के तान सुनाती है
मेरे गाँव के सन्नाटे को
चीरते अबिरल बहती जाती है।।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्वाधिकार सुरक्षित
23/12/2020

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111632013
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