रोटी
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आओ सब मिल कर चले
उसे देखे वह कितनी गरिमा
के साथ खुद को तपा रही है
चूल्हे की आग में अद्भुत
सुगंध फैला रही है
आश्चर्यजनक तरीके से पक रही है
उसकी गर्मी आदमी के पेट
और पीठ के तंतुओ में पहुच रही है।
धीरे धीरे वो शिकार होने को
तैयार हो रही है
धीरे धीरे वो और खूबसूरत
होकर सुर्ख़ हो रही है
मेरे हाथ भी उसके शिकार
करने को आतुर हो रहे हैं
मैं जितना उसको तोड़ता हूँ
मेरी भूखग्नि और तेज हो जाती है।
उसके हर कौर पहले कौर से
और ज्यादा स्वादिष्ट लगते हैं
इसका शिकार करने के लिए
आदमी क्या से नही करता
इसके स्वाद की गर्माहट के पीछे
अनंत ब्रम्हांड छिपे हैं
मैंने आज तक इससे ज्यादा
शक्तिशाली शिकार नही देखा।
दुनिया की सारी खुशियाँ
दुनिया की सारी शक्तियाँ
दुनिया की सारी सम्पदाएँ
इसके सामने नतमस्तक हो जाती हैं
इसके आगे सोने की लंका भी
धूर समान है क्योकि यह रोटी है
और रोटी के सामने
अहंकार की भी नही चलती है।।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्वाधिकार सुरक्षित
22/12/2020