मेरे प्रभु यह शक्ति दो सदगुण गृहण कर लूं,
दुख किसी को हो न ऐसा आचरण कर लूं।
स्नेह संचित भाव हों मैं जब कभी बोलूं,
दूसरा सुख में रहे तो मैं ही मैं रो लूँ,
प्रेमपूरित मै प्रभा का आवरण कर लूँ,
मेरे प्रभु यह शक्ति दो सदगुण गृहण कर लूं।।
-(Rajneesh Singh)