उड़ते अखवारों के पन्ने
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अंधियारे की चुप्पी
मुर्ग़ा ने तोड़ दिया
हवा में बिस्तर काँपा
सरिता के तीर गया
किनारे में ओस गिरी
चाँद की आँख फिरी
मूर्छित हुई रात कहीं।
आम के बकीचे में
सुए की चोंच चली
प्रतीक्षा की आंखें पथराईं
कुहरे की बजी बाँसुरी
गुलाबों सी खिली बाहें
सुए की जब चोंच हिली
क्षितिजों तक उड़तीं चिड़ियाँ
पतली पतली शाखाओं सी।
सुबह द्वार पर खट खट
उड़ते अखवारों के पन्ने
साइकिल की घण्टी सुनकर
बच्चे भागे आँख भीजतें
कचड़े वाले कि सीटी सी
पूरे घर की साँसे फूली
दूध वाले का डिब्बा देख
कमरे कमरे पत्नी नाची।।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्वाधिकार सुरक्षित
20/12/2020