कुछ दिनों पहले मेरी दीदी और जीजु घर आए थे, उनकी शादी को अभी दो महीने ही हुए थे। दरअसल पगफेरे की रसम निभाने आए थे।
उस दिन शाम को मेरी बड़ी मां ने जीजु से पूछा कि "सब ठीक है न?"
जवाब में जनाब बोले की, "हा सब ठीक तो है, बस इसे ढंग से साडी पहनना नही आता, मतलब उसे साडी में चलने फिरने में दिक्कत होती है। मैं तो उसे कई बार पूछता हु की पहले पहनी ही नहीं या मां ने सिखाया ही नहीं! "
इतना बोलकर वो जैसे कोई घटिया मज़ाक किया हो वैसे हँसने लगा। और उनके साथ सब घरवाले भी जूठी हँसी दिखाने लगे, किसी ने उनको कुछ बोला नहीं। बोलते भी कैसे लाडले दामाद जो थे।
दूसरे दिन जीजु को उनके कपड़े नही मिल रहे थे, बड़ी मां ने उनको कपड़े देते हुए बोला की यहा एक रिवाज़ है कि जब दामाद पहली बार आते हैं तो उन्हें एक दिन यह कपड़े पहनने पडते हैं। कपड़े थे धोती और कुर्ता।
जीजु ने पहले तो हा बोल दिया पर जैसे जैसे दीन गुज़रता गया उनकी मुश्किलें बढ रही थी। न तो वो सही से चल पा रहे थे, न ही बैठ सकते थे। यहा तक की बाथरूम भी नहीं जा पाये।
दीन ख़त्म होते ही उन्होने कपड़े जल्दी उतार दीये। और अपना टिशर्ट ट्रेक पहन लिया।
बडी मां उनके हाथ में शगुन के पैसे देते बोली कि, "बस यही बात मेरी बेटी की है। उसने पहले साडी तो पहनी है पर साडी पहनके कुछ काम नहीं किया। बस आप थोड़ा धीरज रखो वो जल्दी अडजस्ट हो जायेगी।
शायद जीजु को अपनी गलती का अहसास हो गया था, उन्होने दीदी सहीत सभी से माफी मांगी और नए घर में दीदी को सेट होने में मदद करने का वादा भी किया।
बात जो भी हो स्त्री हमेशा से खुद को अडजस्ट करने में पुरुष से आगे रही है। पर फिर भी पुरूष वर्ग से उसकी उपेक्षा ही करता आया है। फिर उसमें भी स्त्रीयाँ अडजस्ट होती रहेगी।