Hindi Quote in Poem by shiv bharosh tiwari

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मैं सावन का बूढ़ा बादल
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मैं भटक गया हूँ
सावन का बूढ़ा बादल।
ग़ुलाबी सूरज की नव रश्मियों की
पंखुड़ियों से अटखेलियाँ कर न सका।
प्रदूषित आसमान से शप्त हुआ हूँ
शदियों से सावन की गोदी में
मैं खेलता था
इस सावन मैं भटक गया हूँ।

मेरी पलकों में नव रश्मियों के
अनंत सपनों के डेरे हैं
बिजली की तड़पन है
इस वरस शुद्ध हवाएँ
मेरा साथ छोड़ गई हैं
वह कहीं ठिठक गयीं हैं
ठहर गयीं हैं
जिससे मैं नव रश्मियों से
मस्ती कर न सका।

बंजर होती धरती
ढ़ीली होती हलों से उसकी पकड़
सरिताएँ भी मुँह मोड़ रहीं हैं
संध्या मुझको निहार रही
गायें मुझको बुला रही हैं
बीजों के हलक सूख रहे हैं
ऋतुएँ मानो ख़ुद को भूल चुकी हैं।

कब तक भटकूँगा मैं?
आसमान के उजड़े सपने लिए
बिजली के कड़क सम्हाले
फफके अपने अश्रुओं को थामे
आसमान के चारो ओर
कब से मैं घूम रहा हूँ
नमीं के वास्ते चाँद का
मांथा चूम रहा हूँ
भभकते मन की अग्नि मेरी
कैसे बुझ पायेगी?

जिस धरती से जन्म लिया
जिस धरती में मिल जाऊंगा
जिस धरती की जड़ हूँ मैं
जिस धरती की हूँ मै टहनी
जिस धरती से आती अलका
मैं खुद की प्यास बुझाता हूँ
धरती सूखी मैं कैसे सह पाऊँ?
मैं सूर्य नव रश्मियों से अब
खूब करूँगा अटखेलियाँ
मैं सावन का बूढ़ा बादल हूँ।।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'
सर्बाधिकार सुरक्षित
19/12/2020

Hindi Poem by shiv bharosh tiwari : 111629053
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