अर्थो की छाती बैठे पैर जमा कर
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त्रिदेव मिले जब राजभवन में
श्मशानों जैसे सब दीये जलाये
सभी सियार जब शेर बन गए
प्रतिभा को मिल मूर्ख बनाये।
जनता को दुख जनित करके
आस्था को कर रहे स्वार्थ युक्त
पैर जमाये अर्थों की छाती पर
करें स्वर्ण को प्रखरता से मुक्त।
मानवता की भी रूह कपि
सुशांत को जब किये वो शांत,
गंगा की उठती तरंगें भी रोईं
गगन शिखर जब हुआ अशांत।
राज्य की जनता भी उकताई तब
जनता के सीने में जब अनर्थ घोंपा,
चीख़ों की ध्वनियों में डाला पर्दा
लक्ष्य-संघर्ष मार्ग मिल साज़िश रोपा।
संबेदन-सत्यों की पूरी बस्ती में
जब बहने लगे हृदयों के अंगना,
अभिमानी की उखाड़ फेक से
टूटे अरमां, बिखर कई कंगना,
साज़िस के गट्ठे को सिर पर रख
धूलभरी पगडंडियों में चली क़लम,
साहसी प्रेरणा-पुरुष के कंधों से
सच से छिलके निकालते रहे परम।
रचनाकार:-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'