पिछला एक बरस कुछ गुजरा ऐसे
सबने खोये कई स्वजन और परिजन जैसे
मृत्यु है निश्चित ये तो सब जानते थे वैसे
फिर भी, मन नहीं मानता कि ये हुआ कैसे।
अब ना रही किसी के प्रति कोई भी कड़वाहट
घर कर गयी अपनों को ना देख पाने की घबराहट
खत्म हो गयी अब सारी ऊपरी बनावट
ना रही मन में कोई भी पुरानी गिरावट।
लौट के ना आएंगे कभी फिर वही
भूल गए हम सब कही अनकही
पाने को अब ना कोई इच्छा रही
सोच को मिल गयी है एक दिशा सही
अब पहले जैसा कुछ नहीं, कुछ नहीं।