इस बज़्म में हैं सुख़नवर बहुत ही अच्छे
मगर आपकी तो कुछ अलग ही बात है
मैं आपकी क़लम की क्या तारीफ़ करूं
क़लम के हर लफ़्ज़ रूह-ए-कायनात हैं
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-सन्तोष दौनेरिया
(बज़्म - सभा, सुख़नवर - कवि, लफ़्ज़ - शब्द, रूह-ए-कायनात - संसार की आत्मा)
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