एक शख्स...
जज्बात कभी जाहिर नहीं होने दिए मैंने अपने
न जाने कैसे वो शख्स ने महसूस कर लिया
आंखों से कभी एक बूंद आंसू नहीं गिराए हमने
न जाने कैसे वो शख्स ने आंखों मे नमी देख ली
बयां नहीं कर पाए कभी हाल-ए-दिल का दर्द
न जाने कैसे वो शख्स ने दर्द-ए-दिल को जान लिया
अक्सर अकेले ही चलती आई हूं जिंदगी की राह मे
न जाने कब वो शख्स ने साथ चलना शुरू कर दिया
हम तो बस यूँ ही बेमकसद उम्र गुजारते चले जा रहे थे
न जाने कब वो शख्स मकसद देकर जीना सीखा गया
दुनिया की भीड़ मे अक्सर अकेला पाया है खुद को
न जाने कब वो एक शख्स मेरी पूरी दुनिया बन गया
जिंदगी को दूसरो के हिसाब से जीती चली जा रही थी मैं
न जाने कब वो शख्स ने बेफिक्री से जीना सीखा दिया
-हीना पटेल