हैवानों और हुक्मरानों में क्या ही फर्क है??
एक इंसानियत की रीढ़ तोड़ देता है
दूसरा बिना रीढ़ के अकड़ के खड़ा होता है
देखा कल मैंने भी इंटरनेट के जंजालों में।
दूर जल रही थी किसी के वारिस की लावारिस सी चिता
चिता ने चिंता में डाल दिया था मुझे
स्त्री होने पे मुझे गर्व है,
पर देखो हर औरत के चेहरे पर कहीं ना कहीं गहरा दर्द है
हैवानों की दरिंदगी का खेल चला जा रहा है, वो कटी ज़बान सीए जिए और मरे जा रही है
अरे मरती है तो मरती रहे कौन से हुक्मरानों के कानों में चीख जा रही है।