हिंद के निवासियों,
सदियों के वासीयों,
युगों युगों के ज्ञानीयों,
विश्व में अभिमानीयों....
हिंद की मिट्टी के लाल,
शब्दों का युग्म जाल,
ममत्व की मिठास,
मातृभाषा के व्यापारीयों.....
गैर की चरण धूलि,
मस्तिष्क पर सजांए,
भूल गए अमिट छाप,
हिंदी जो सबके मन पर लगाएं....
हर शब्द का जन्म हुआ,
जिस भाषा के गर्भ से,
भूल उसे भर गएँ, तुम
कैसे दर्प से.....
कैसी ये दुहाई है,
जिस माँ का गर्व थे तुम,
उसी माँ की बोली बोलने में,
शर्म से आँखे झुक आई हैं.....
हिंद की पहचान, हिंदी,
हर बोली की प्राण,हिंदी,
वेद, शास्त्र और पुराण,
हैं, हिंदी का सबसे ऊंचा स्थान.....
न भूलो,
माँ के आँचल की ये सीख,
अपनाओ जो है, हमारा,
क्या मिल जाएंगा, लेकर,
गैर की भीख....
चीर भीड़ को,
पहचान बनाओं
मातृभाषा को,
कण कण में बसाओ....!!!
हिंदी दिवस की शुभकामनायें देने वाली कोई बात नहीं....क्यूँकि हमारे देश का 75% कारोबार दुसरी भाषाओं में होता हैं.....और विडम्बना ये है कि जो हिंदी बोलता है,उसे गवार समझा जाता है.....!