रूह
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दिल का एक हिस्सा
मन्नत के धागों से बंधा
रूहो का होता है...
सुनते है वहाँ कोई
बहुत दिल से जुङा रहता है...
दिखता नहीं वो कोना
ना ही वो रूह नजर आती है..
तभी तो ऐसे
रिश्तों को समझ पाना भी
आसां कहाँ होता है...
खामोश रूहें
वहीं सकूंन से गले मिला करती हैं..
कहने को तो कुछ नहीं
पर महसूस करने को
बहुत कुछ हुआ करता है..
दिल के उसी कोने मे --
रूहों का
आरामगाह हुआ करता है...
प्रगति गुप्ता