🌺अजनबी होता शहर🐓
एक लम्बे अंतराल पर अपने
कस्बाई शहर लौटा हूं
सुखद यादों के चित्र
मन में संजोए हुए..१
पर यह क्या
शहर ने बाहें नहीं फैलाईं
अपना शहर
पहचान ही नहीं रहा मुझको
न ही मैं पहचान पा रहा हूं
अपने शहर को
वो भी अपरिचितों से घिरा है
और मैं भी..२
आते जाते लोग
परस्पर अपरिचित
कुछ कुछ उदास से
जल्दबाजी में दिखाई दिये..३
पहले की तरह
कुछ ठहर कर
हालचाल लेते
दुआ सलाम करते
नहीं दिखे..४
अभी अभी घर पहुंचा हूं
मां बाबू डेहरी पर इंतज़ार में मिले
बूढ़ी धुंधलाई आंखों में
चमक लिए..५
शाम हो चुकी
अंधियारा पसरने लगा
पड़ोसी से कोई नहीं आया
पीड़ा भीतर तक उतर आई..६
पहले जैसे दिन
अब नहीं रहे बेटवा
जी नहीं लगता तनिकौ..७
मन उदास हो गया
एक संकल्प उभरा
अगले दिन मां-बाप के संग
शहर लौट आया..८
अजनबीपन यहां
वहां की अपेक्षा
कुछ कम लगा
🔥समाप्त🔥