सबके सपने साकार करते- करते पता नही चला कि कब दिन हुआ कब रात ढली, बस सबके सपने साकार करता चलता रहा.....
एक दिन मेने सोचा कि मेरे भी कोई सपने होने चाहिए उसे भी साकार होना चाहिए,
पर मुझे तो मेरे कोई सपने दिखे ही नहीं...!
तब मेने मेरे दिल से पूछा ऐसा कयु..?
तो मेरे दिल ने मेरे सवाल का एक सुंदर जवाब देते हुए कहा,
कि ऐ मेरे दोस्त तु सबके सपनो को साकार करते-करते अपने सपनो को देखने के लिए सोना ही भुल गया...
~~~ रुचिर गांधी ~~~