ग़ज़ल
नहीं वो हवाओं से डर जाने वाले
जो हैं बनके खुशबू बिखर जाने वाले
वो मटकी बरोसी दही दूध लस्सी
मिलेगा कहाँ ऐ शहर जाने वाले
कहाँ उनकी पीड़ा को समझा है कोई
जो हैं गाँव को छोड़कर जाने वाले
रहे ही नहीं लोग वो अब शहर में
मुसीबत में सबकी ठहर जाने वाले
गुलाबों-सरीखे मिले लोग हमको
महकते-महकते बिखर जाने वाले
कलम है तेरे हाथ में ऐ 'पवन' जब
तो लिख शे'र दिल में उतर जाने वाले
लवलेश दत्त 'पवन'
बरेली