कि जैसे आ जाती हैं बारिशें
बिन बताये
वैसे ही आ गये तुम
बिन बताये ,
कि जैसे कोई पुराना ख़त
देता है दस्तक
कि मिल जायेंगे
फिर किसी मोड़ पर ,
कि जैसे सहरा में दिख जाये
कोई दरख्त
अपनी घनी छाँव तले
समेटे हमारी परछाँइयों को ,
कि जैसे सागर को मिल जाये
सीपी
मोती वाला
सफेद होने के सुख के साथ,
वैसे ही तुम आ मिले हो
एक सुकून जैसे
कि कहना सब कुछ नहीं होता
बस तुम्हारा होना
छाँव जैसा है
इस जिंदगी की धूप में ---
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@सीमा सिंह