ज़िन्दंगी बहोत कुछ सिखाती है
कुछ राहों से वो परिचय करवाके देगी
कुछको हमें खुद ही ढूंढनी होंगी
कुछ साफ़ होगी, कुछ बंजर सी भी होंगी
कुछ फूलोंसे भरी-भरी सी दिख रही होंगी
बंजर धरती पर चल पड़े तो फूल नहीं मिलेंगे
फूलों के राश्ते चुनोगे तो काटे भी चुभेंगे
कोई भी राह मुकम्मल नहीं होंगी
कोई भी राह आसान नहीं होंगी
कुछ राहों पे आँखों में धूल झोंख दी जायेंगी
तो कही धुप में गीली होके पिगल सी जाएगी
कुछ लोग थे जो लौट चुके थे ये समझकर
दूर से रूखेसे पेड़ों की शाखाए देखकर
पतझड़ के साये का खौफ था उनमे
थोड़ा आगे जाकर तो देखा होता
बहार ही बहार बिछी थी उस मज़ार पर
Mittal