Hindi Quote in Poem by Mittal Mewada

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याद है क्या वह छतों पर बैठके
बेरंग से बेस्वाद बर्फ के मज़े उड़ते थे
बातों के कोई सिरे नहीं मिलते थे
एक ख़तम होती नहीं तो दूसरी शुरू होती थी
लफ्ज़ क्या थे याद नहीं लेकिन
ठिठोली के टप्पे निचे तक सुनाई देते थे

वहाँ आजभी रख्खी हुई है कदमो की आहटे कई
खड़ी होंगी बिना थके, गर्मिओ से थोड़ी थी झुलसी हुई
सर्द रातो में ठिठुरती हुई
ना सोइ हुई, ना जागी हुई
कई रंगो ने पूता है उसे हर दिवाली में
हर रंग में रंगी हुई, थोड़ी सी है बदली हुई
हर बारिश में जमी हरी काली उसपे
रुक रुक के चलती थोड़ी फिसलती हुई
अगर जाओ वहां कभी फुर्सत मिले जो कभी
थोड़ी सी सुन लेना उसेभी इत्मिनानसे
अगर कुछ खरी खोटी सुनादे तबभी
बोहोत रूठीसी मिलीथी पिछली बार हमसे भी

Mittal

Hindi Poem by Mittal Mewada : 111446937
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