चाँद जब दिखेगा दुआ को
हाथ उठायेगे
ना मिलेंगे गले,
ना हाथ मिलायेंगे
इस बार ईद कुछ ऐसे मनायेगे
।
फासले दरमियाँ होगे
ज़रूर एहतियात के
फिर भी दूरियां दिलो की
मिटायेंगे,
इस बार ईद कुछ ऐसे मनायेगे
।
ना खरीदेगे कपड़े नए,
ना बाज़ार जायेगे
पुराने कपड़ो से ही खुद को
सजायेंगे
इस बार ईद कुछ ऐसे मनायेगे,
।
ख्याल रखेगे, ग़रीब का
घर उसका भी सजायेंगे
उदास चेहरों पर खुशियों भरी
मुस्कान लाएंगे
इस बार ईद कुछ ऐसे मनायेगे,
"इक़बाल अमरोही"