#प्रकाश
बाहर क्यों ढूँढे रे प्रकाश,
तुझ में ही जो विराजमान।
हटा अँधेरों की फैली चादर,
मिटा निराशाओं के बादल।
हाथ उम्मीदों की धर मशाल,
झाँक अन्तरतर सागर पार।
मार्ग भटके अगर जो तू,
सोच विचार बढ़ आगे जा।
कर्मठता बल से पा जाएगा,
प्रकाश जो बाहर ढूँढ रहा।
रोशन होगा, ये मन तेरा,
जग को भी देगा उजियारा।