"बीत जाय यह दु:खमय रजनी"
उद्वेलित मन है करे ठिठोली,
कब तक होगी आँख मिचौली,,
चाल समय ने चली है अपनी,
जग पर छायी दु:खमय रजनी।
पशु पक्षी स्वतंत्र घूम रहे,
वातावरण नव चेतन झूम रहे,,
धरा सदा आराध्य जननी,
क्यों आयी यह दु:खमय रजनी।
अपने ही कुछ कर्मों का फल,
भोग रहा है मानव प्रतिपल,,
प्रकृति हुई है बहुत ही छलनी,
आनी ही थी दु:खमय रजनी।
संकट काल बड़ा है भारी,
सावधान रहो बन धैर्यधारी,,
मृत्यु पग पग ढूँढे ठगनी,
बीत जाय यह दु:खमय रजनी।
पर्यावरण से नाता जोड़ो,
अहं लालसा अब सब छोड़ो,,
परिस्तिथियों की सुन लो कथनी,
बीत जाएगी दु:खमय रजनी।
राजीव कुमार गुर्जर
मुरादाबाद🙏✍