" माँ "
माँ तू प्रेम की सूरत है, तू ममता की मूरत है,
तू पावन प्रीत निर्झरी है, तू कितनी प्यारी है,
ये जग है ये कानन काँटों का,
तू फुलवारी है, ओ माँ,
माँ तू प्रेम की सूरत है,तू ममता की मूरत है।
मामूली नाम नहीं है माँ तू
जीवन का सरताज है तू ,
जीवन में वैभव पाया मैंने,
इस शुभाशय का राज है तू ,ओ माँ,
माँ तू प्रेम की सूरत है तू ममता की मूरत है।
मैं जब हंँसता हूंँ तू हंँसती है मांँ,
मैं जब रोता हूंँ तू रोती है मांँ,
मेरे कष्टों को अपने कष्टों पे वारी है,
सब कुछ मेरे पे तू बलिहारी है,ओ माँ,
माँ तू प्रेम की सूरत है, तू ममता की मूरत है।
माँ तू केवल प्यार नहीं है,
मांँ तू बस श्रृंगार नहीं है,
माँ तू जग की वो शक्ति है,
जिसका पारावार नहीं है,ओ माँ,
माँ तू प्रेम की सूरत है,तू ममता की मूरत है।
मांँ बिना प्यार कहांँ है ?
मांँ बिना सूना सारा जहाँ है,
माँ ने कुदरत को रचा या कुदरत ने मात,
धन्य वही है जो जान ले, दोनों के जज्बात,ओ मांँ,
माँ तू प्रेम की सूरत है,तू ममता की मूरत है।
कवि परिचय-
जगदीप सिंह मान "दीप"
एम.ए.हिन्दी,बी.एड,NET
माता-पिता का नाम -श्रीमती शरबती देवी,श्री श्रीराम मान