ज़िंदगी....
ज़िंदगी बस यूँ गुज़रती जाती हैं...
बिन तेल के जैसे सुलगती बाती हैं ..
चंद लम्हें क्या मिले खुशहाली के
नाउम्मीदी में यूँ बिखरती जाती हैं...
एहतियाती से मैं रखता हूँ क़दम
बेरहम फिर भी उलझती जाती हैं...
अश्क, बन सैलाब, बहते आँखसे
बे ख़ौफ़ सीने में झुलसती जाती हैं ..
कोशिशें कर ली जो बस में थी मेरे
फिर भी हाथों से फ़िसलती जाती हैं..
नज़्म सी बहती थी मेरी ज़िंदगी
ज़ख्म बन दिलमें सिमटती जाती हैं ...
Devanshu Patel
4/27/2020