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मेरी हथेली पर सुस्त पडी
रेखाये ,चक्रव्यूह की तरह
कभी तूफान उठाती है
और कभी खामोश सागर किनारा।
दोनो हथेलियों को
जुड़ने पर ये
बोसा लेती है और
बिछड़े प्रेमी सी गले लगती है रेखायें
मतभेद होने पर चीख चीख कर
लड़ती है
बाज़ दफा ये हुआ, चलते तुफान
में से उठकर हस्त्- रेखाओ ने हाथ चूमा
फिर वही निढाल हो गई।
कुछ पण्डितो ने इनके नखरो
पर कुछ बुरे रंग ,बुरे सितरो का असर बताया
और कुछ ने इनकी हालात पर
हवन किया ।
न जाने कितनी तरकीब की
इन्हे बदलने की
पीपल के चक्कर लिये
दरगाह पर माथा टेक
चर्च में मोम्बती
और गुरुद्वारो में
अरदास।
सब फिजूल।
माँ अक्सर इनको भाग्य कहती ,पर उन्होने
बहती नदियो पर बान्ध डालकर
खुद को ही भाग्य विधाता भी कहा।
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